2022 कबीर दास जयंती | कब है कबीर दास जयंती | KABIRDAS JYANTI २०२२ |
2022 कबीर दास जयंती | कब है कबीर दास जयंती | KABIRDAS JYANTI २०२२ |
इस लेख में कबीर दस जी के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे | कबीर दस जी का जन्म कब और कंहा हुआ था | कबीर दस जी के परिवार के बारे में और बहुत कुछ जो आप जानना पसंद करेंगे |
Table of contents
1. कबीरदास जयंती कब मनाया जाता है ?
2. कबीरदास जयंती कँहा मनाया जाता ?
4. कबीरदास जयंती के कई नाम |
5.कबीरदास जयंती के पौराणिक कथा|
6.कबीरदास जयंती का महत्व |
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| संत कबीर दास |
कबीरदास जयंती कब मनाया जाता है
भारतवर्ष में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं, कबीरदास जयंती उनमें से एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है | कबीरदास जयंती हर वर्ष जेठ माह के पूर्णिमा को मनाया जाता है | इस वर्ष २०२२ में कबीरदास जयंती १४ जून २०२२ को मनाया जाना है | कबीरदास जयंती संत कबीरदास के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है| | इस वर्ष २०२२ में कबीरदास की ६४५ वी जयंती १४ जून २०२२ को मनाया जायेगा |
कबीरदास जयंती पुरे भारतवर्ष में मनाया जाता है | खास कर उत्तर भारत में बहुत धूम धाम से कबीरदास जयंती मनाते है |इसके आलावा नेपाल वर्मा भूटान इत्यादि देशों में भी बहुत सादगी एवं धूम धाम से मनाया जाता है | विदेशों में रहने बाले भारतवासी अपने देशों में धूम धाम से कबीरदास जयंती मनाते है |
कबीरदास जयंती का इतिहास
कबीरदास जयंती श्री संत कबीरदास के जन्म दिवस के रूप में पुरे भारतवर्ष में मनाया जाता है | पौराणिक मान्यता एवं इतिहासिक प्रमाण के अनुसार भगवान श्री कबीरदास का जन्म एक मुस्लिम परिवार में १३९८ ई ० में उत्तरप्रदेश के लहरतारा ताल ,काशी में जून माह के पूर्णिमा को हुआ था | इनके माता पिता का नाम निरु एवं नीमा था | कुछ लोगों के अनुसार इनका जन्म दिन १४५५ ई ० के जून माह के पूर्णिमा को हुआ था| इनके जन्म के बारे में अलग अलग मत है | कबीरपंथ के अनुयायी मानते हैं की १३९८ के जून माह के पूर्णिमा के दिन को कबीर जी बाल रूप में निरु एवं नीमा नाम के दम्पति को प्राप्त हुए थे | कबीर जी प्रकट हुए थे ,इस कारण इस दिन को कबीर प्रकट दिवस या जयंती के रूप में मनाते हैं | उनका पालन पोषण काशी में हुआ था | काशी के गुरु रामानंद इनके गुरु थे |
इनकी शादी ' लोई ' से हुई जिससे उनको एक पुत्र 'कमाल ' एवं एक पुत्री 'कमाली ' का जन्म हुआ | पारिवारिक होते हुए भी वे संत थे | कबीर जी समाज सुधर के साथ साथ अपना पुस्तैनी कार्य करते थे ,लकिन अपने आवश्यकता के पूर्ति करने भर ही काम करते |
कबीरदास जी की औपचारिक पठान पाठन नहीं हुआ,उनको ज्ञान काशी के गुरु रामानंद एवं सत्संग से प्राप्त हुआ | जिंदगी के अनुभव से भी ज्ञान अर्जित किया | उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त था |
कबीरदास को बचपन से भगवन भक्ति में मन लगता था | कबीरदास के भगवान के प्रति लगाव के कारण गुरु रामानंद के परम प्रिय शिष्य बन गए थे | वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और एक ईश्वर को मानते थे | संत कबीर धर्मिक एकता के प्रतिक हैं | उनका जन्म मुस्लमान परिवार में हुआ ,परन्तु वे भगवान भक्त थे और गुरु रामानंद को गुरु मान लिया था | गुरु रामानंद विष्णु के उपासक थे ,कबीर जी भी विष्णु के परम भक्त हो गए थे |
कबीरदास जी १५ वी सदी के रह्स्य्वादी कवि थे,हिंदी साहित्य के भक्तकालीन युग में भगवान के भक्ति के लिए भी प्रसिद्ध हुए | इनके विचारों ने हिन्दुओं के भक्ति आंदोलन को बहुत प्रभावित किया |
कबीरदास जी ने समाज मे प्रचलित गलत आदतों कुरीतिओ को दूर करने का प्रयास किया| उन्होंने धर्म एवं पूजा के नाम होने वाले गलत परंपरा का विरोध किया | उन्होंने समाज के बुराइयों की निंदा किया और उसे खत्म करने का प्रयास किया | वे समाज सुधारक थे और समाज को ज्ञान का मार्ग दिखाया |
कबीरदास जी ने अपना ज्ञान कृति सबद ,सखी रमनि जैसे सरल लोक भाषा से समाज को जागृत करने का प्रयास किया | संत कबीर की भाषा अवधि , सधुककर्डी एवं पंचमली का मिश्रण है | इनकी भाषा में भारतवर्ष के सभी बोलिओं के शब्द मिल जाते हैं कबीर पंथी सरल तरीके से,आडंवरो से दूर रहते हैं | कबीरदास के दोहे अभी भी समाज में प्रचलित है और प्रासंगिक हैं |
संत कबीर जी ने मुख्य छह ग्रन्थ लिखे |
कबीर साखी
कबीर बीजक
कबीर शब्दावली
कबीर दोहावली
कबीर ग्रंथावली
कबीर सागर
कबीर जी समाज सुधर के साथ साथ अपना पुस्तैनी कार्य करते थे ,लकिन अपने आवश्यकता के पूर्ति करने भर ही काम करते |
कबीरदास के विचारों से प्रभावित होकर कबीर पंथ का शुरुआत हुआ,जिसका मतलब है कबीर का पथ या रास्ता | कबीर पंथ, कबीर के शिक्षाओ के अनुसार एक संत मत और जीवन दर्शन है, जिससे मुक्ति मिलती है | कबीर पंथी कबीरदास को एक अलौकिक पुरुष मानते है , और उनकी पूजा आडंवर रहित करते हैं | कबीरदास के द्वारा बताए नियमों का पालन करते हैं और इनके शिक्षा का अनुसरण करते है |
संत कबीर ने अपना पूरा जीवन काशी में समाज सुधार ,किया और ज्ञान की ज्योति जलाई परन्तु अंतिम समय में मगहर चले गये और लगभग १५१८ में मगहर में ही अपनी अंतिम सास ली |
पौराणिक मान्यता है कि काशी में मरने के बाद स्वर्ग मिलता है , अपने कार्य से नहीं | संत कबीर चाहते थे अपने कर्मो के कारण स्वर्ग जाये अतः संत कबीर ने अपना पूरा जीवन काशी में समाज सुधार ,किया और ज्ञान की ज्योति जलाई परन्तु अंतिम समय में मगहर चले गये और लगभग १५१८ में मगहर में ही अपनी अंतिम सास ली |
कबीरदास के अन्य नाम
कबीरदास को इसके अलावा संत कबीरदास, कबीर साहेब, कबीरा कहा जाता हैं |
कबीर पंथी कबीरदास को एक अलौकिक पुरुष मानते है , और उनकी पूजा आडंवर रहित करते हैं | कबीरदास के द्वारा बताए नियमों का पालन करते हैं और इनके शिक्षा का अनुसरण करते है |

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