2023|सतुआनी| मेष संक्रांति

 

                                         सतुआनी 2023 |

परिचय : भारतवर्ष पर्वो का देश हैं | कुछ बहुत ही  महत्वपूर्ण  होते  हैं | आज के व्यस्त जीवन में युवा पीढ़ी पर्वो के 

महत्व को भूलते जा रहें है | हर पर्व का महत्व  होता है ,इसके विशेष में जागरूकता के लिए इस लेख को पढ़ना जरुरी है | 
  KEYWORD :  मेष संक्रांति संक्रांति | कब | क्यू | कैसे | संक्रांति
TABLE OF CONTENT :

१.  मेष संक्रांति पर्व क्या है | 
२. 2023 |मेष संक्रांति कब है |  
३ . मेष संक्रांति कैसे 
४. 2023 |मेष संक्रांति क्यू | 
5. मेष संक्रांति का  महत्व|  

                                     सतुआनी | मेष संक्रांति पर्व क्या है 

सतुआनी ,मेष संक्रांति भारतवर्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है इस दिन चना का सेतु ,गुड़ ,आम का टिकोला ( कच्चा छोटा आम)  गुड़ की बनी मिठाई खाने और बाटने का रिवाज़ है | 

देश के अलग अलग भाग में सतुआनी  अलग अलग नाम से जाना जाता है | जैसे की पंजाब में बैसाखी ,आसाम में बिहू ,केरल में विशु ,तमिलनाडु में पुशंडु ,विषुवत संक्रांति एवं बंगाल में पोहला बैसाख के नाम से मनाया जाता है | इसे सिरुआ विसुवा एवं बैशाखी भी कहते है | 

 सतुआनी  महापर्व हिन्दुओं ,सिखों एवं बोद्धों  के लिए खास महत्त्व का है |  
सतुआनी प्रकृति से जुड़ा हुआ महापर्व है | 

                             सतुआनी | मेष संक्रांति कब मनाया जाता है 

हर हिन्दू पर्व की तरह ही मेष  संक्रांति को मनाने की तारीख में भी संसय हो जाता है | परन्तु हर साल की तरह इस साल भी १ ४ अप्रैल २०२३  को मनाया जाएगा | 

वैशाख के प्रारंभ होने पर सत्तुआनी का महापर्व उत्तर भारत में कई जगहों पे मनाया जाता है | इस वर्ष सत्तुआनी का महापर्व १४ अप्रैल को मनाया जायेगा | १४ अप्रैल को सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करतें है ,इसे मेष संक्रांति भी कहतें है| इस के कारण सत्तुआनी का महापर्व  मनाया जाता है | यह पर्व खास कर के बिहार,झारखण्ड उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है ,परन्तु अन्य राज्यों में इस पर्व को अलग अलग नाम से मनाया जाता है | परन्तु इसे पंजाब में बैसाखी ,आसाम में बिहू ,केरल में विशु ,तमिलनाडु में पुशंडु ,विषुवत संक्रांति एवं बंगाल में पोहला बैसाख के नाम से मनाया जाता है | इसे सिरुआ विसुवा एवं बैशाखी भी कहते है |  

 इस साल सतुआनी  हिन्दू पंचांग के अनुसार  १ ४ अप्रैल ,दिन शुक्रबार और हिन्दू मास के वैशाख माह को  पूरी आस्था एवं हर्सोउल्लास  से मनाया जायेगा | इस संक्रांति पर सूर्य भगवान उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी कर चुके होते हैं | इस संक्रांति के साथ वैशाख माह शुरु हो जाता है | 

इस से इस का एहसास होता है की मौसम अब तेजी से गरम होगा | और जीव जंतु गर्मी से परेशान होंगे | पहले संचार व्यबस्था नहीं थी तो इसी तरह के पर्वो से मौसम का पता चलता था | 

                            सतुआनी कैसे मनाया  जाता है 

इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्य भगवान एवं अन्य भगवान की पूजा अर्चना करते हैं | गंगा स्नान  का विशेष महत्व है | सूर्य भगवान को सतु  , गुड़,टिकोला ( कच्चा आम) मिठाई  इत्यादि चढ़ाते है और उसके बाद प्रसाद के रुप में  ग्रहण करते हैं | इस दिन  सतु  , गुड़,टिकोला ( कच्चा आम) मिठाई  एवं अन्य सामाग्री दान करने का खास महत्व है | भगवान प्रसन्न  होने पर सुख, शांति शक्ति धन एवं  यश प्रदान करते है | 

इस दिन स्नान दान का खास महत्व है | नदी के किनारे मेला लगता है ,जहाँ खास कर माटी के घड़ा सुराही इत्यादि के समान बेचे एवं खरीदे जाते है | 

मान्यता है की माँ गंगा नदी इसी दिन धरती पर अवतरित हुई थी |  

कोई भी पर्व स्वादिस्ट भोजन के बिना पुरा नहीं होता है ,तो इस पर्व मे भी  कई तरह के स्वादिस्ट पकवान बनाने एवं खाने का प्रचलन है | इस दिन खास कर सत्तू ,सत्तू से निर्मित खाने एवं आम झोरा ,गुड़,टिकोला खाने का प्रचलन है | 

    इस दिन 'बासी खाने कि परंपरा है | मान्यता है की मेष संक्रांति के समय सूर्य एवं चाँद के रौशनी से अमृत वर्षा होती है,जो रात में रखे खाने में संग्रह हो जाता है | जिससे रात में रखे खाना  (बासी) खाने से स्वाथ्य ठीक रहता है | इस कारण लोग रात में कुछ खाद्य प्रदार्थ रख देते है और सुबह खाते है | 

    इस के दूसरे दिन यानि १५ अप्रैल को 'जुड़ शीतल का त्यौहार मनाया जायेगा |  

                        सत्तुआनी  काहे मानते है 
य     इस समय रबी की फसल पक जाती है | कटाई हो कर ये फसल घर आ जाता है जिससे जन मानस खुसी मनाते है | प्रचुर मात्रा में फसल होने के लिए लोग भगवान एवं प्रकृति को धन्यवाद देते है और उनकी पूजा अर्चना करते है | 

                         सत्तुआनी का महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन से सौर्य नव वर्ष की शुरुआत होती है| सतुआनी मानाने की बहुत पुरानी परंपरा है|  

प्राचीन काल में जब आज के तरह कोल्ड ड्रिंक्स नहीं थे तो आम झोरा ही शीतलता प्रदान करता था | आज भी यह जनसाधारण के मन मानस में है और गर्मी एवं लू से बचने के लिए बहुत उपयोगी है | कुछ विद्वानों के अनुसार यह आज के कोल्ड ड्रिंक्स से बहुत ज्यादा लाभप्रद है | 

 इसी तरह प्राचीन काल में जब आज के तरह फ्रीज़ नहीं थे तो पानी को ठंडा रखने के   लिए माटी के घड़ा सुराही इत्यादि  का इस्तमाल होता था | इस दिन से माटी के घड़ा सुराही इत्यादि  समान बेचे एवं खरीदे जाते है | इससे कुम्हार लोगो की आय में इजाफा होता है इसके कारण उनके जीवन स्तर में सुधार होता है | 

ये माटी के बर्तन पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी है | इससे प्रदूषण नहीं होता है | कुछ विद्वानों के अनुसार  माटी के घड़ा सुराही इत्यादि  स्वास्थ के लिए भी हितकर है| इस कारण  सरकार भी | माटी के बर्तन के उपयोग को बढ़ावा दे रही है |   इतनी जानकारी होने के बाद आइए हम मसतुआनी पर्व  को कोविड १ ९ के रोक थाम के मानको का अनुपालन  करते हुए स्वादिस्ट पकवान के साथ मनाएं | 

                            सामाजिक एवं व्यपारिक महत्व

सतुआनी बाहर से  काम करने वाले अपने  घर वापस आते हैं ,पुरे परिवार के साथ सतुआनी मना कर वापस लौटते है | इससे संबंध मजबूत होते है | 

सतुआनी  में  नए वस्त्र पहनने का रिवाज़ है | इससे कपड़े का बाजार में काफी चहल पहल रहती है | 

भारतवर्ष में त्योहार में स्वादिस्ट पकवान बनाने खाने खिलाने का परंपरा है | सतुआनी  में  अपने परिवार और दोस्तों के साथ खाने का रिवाज़ है | रामनवमी  में भी खाने ,पीने और मिष्ठान की काफी बिक्री होती है | इससे   व्यापार जगत में काफी मुनाफा होता है |


·          अस्वीकरण %  इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार विभिन्न लेखों]संचार माध्यमों से लिए गए है और सभी सूचनाएँ मूल रुप से प्रस्तुत की गईं हैSaA व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार नहीं हैं तथा इसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं हैमानवीय भूल ,टंकण भूल भी हो सकता है इसके लिए लेखक किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है|

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