परशुराम जयंती| 2023 |parsuram| jyanti|2023
परशुराम जयंती| 2023
प्रस्तावना : परशुराम जयंती 2023|Parsuram Jayanti| 2023 Hindi| और बहुत कुछ जो आप जानना चाहेंगे
इस लेख में हम परशुराम जयंती के विषय में बहुत कुछ जानेंगे |परशुराम जयंती कब मनाया जाता है,इसका महत्व एवं बहुत कुछ | आने वाले पीढ़ी को अपने उत्सवों के विषय में जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है |
Table of contents
1. परशुराम जयंती कब मनाया जाता है
2.परशुराम जयंती कँहा मनाया जाता है
३. परशुराम जयंती कैसे मनाया जाता है
४. परशुराम जी के कई नाम है
4.परशुराम जयंती कई नाम
5.परशुराम जयंती के पौराणिक कथा
6.परशुराम जयंती का महत्व
परशुराम भगवान
परशुराम जयंती कब मनाया जाता है
भारतवर्ष में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं, भारतवर्ष में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं, परशुराम जयंती का त्योहार उनमें से एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है | परशुराम जयंती का त्योहार हर वर्ष बैसाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है |
इस वर्ष २०२3 में परशुराम जयंती २२ अप्रैल को मनाया जाना है |
बैसाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया को सुबह २२ अप्रैल २०२3 को सुबह ०५ बजे से मनाया जाना है | परशुराम जयंती ,परशुराम जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है| | इस वर्ष परशुराम जयंती २२ अप्रैल २०२3 को मनाया जायेगा |
भगवान परशुराम का जन्म बैसाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया को हुआ था | इस तिथि को अक्ष्य तृतीया भी कहा जाता है और मनाया जाता है | इस तिथि को युगादी भी कहा जाता है और इसी दिन त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था |
इनके पिता का नाम महर्षी जमदग्नि एवं माता का नाम रेणुका देवी था | महर्षी जमदग्नि एक ब्राह्मण थे जबकि रेणुका देवी छत्रिय थी | इस कारण परशुराम जन्म से ब्राह्मण थे,परन्तु माता के कारण उनमे छत्रिय गुण ज्यादा था |
पुराणों के अनुसार वे जगत के पालन करता भगवान विष्णु के छठे अवतार थे | भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे और धरती पर धर्म की रक्षा करने अवतरित हुए थे |
महाभारत और पुराणों के अनुसार इनके माता पिता ने उनका नाम 'राम' रखा | वे भगवान शंकर के परम भक्त थे | दिन रात भगवान शंकर के आराधना में रत रहते थे | इनके तपस्या से भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो कर वरदान में एक फरसा दिया | फरसा को परशु भी कहते है | यह भगवान शंकर के द्वारा दिया गया एक अमोघ अस्त्र था | जिसे राम हमेशा धारण करते थे ,जिसके कारण बाद में उनका नाम परशुराम हो गया |
भगवान परशुराम शास्त्र विद्या में पारंगत थे और उनकी ख्याति दूर दूर तक चन्द्रमा के प्रकाश की तरह फैली थी | वे शास्त्र विद्या के सुप्रसिद्ध आचार्य थे | दूर दूर से लोग शास्त्र विद्या सीखने उनके पास आते थे | उनके सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे -भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण एवं महारथी कर्ण | भगवान परशुराम को छत्रिय से नफरत थी ,अतः वे छत्रिय को शिक्षा नहीं देते थे | और वे केवल ब्राह्मण वर्ण को ही शास्त्र विद्या सिखाते थे |
परन्तु कर्ण ने छल पूर्वक अपने जात को छिपाते हुए उनसे शास्त्र विद्या प्राप्त कर लिया | परन्तु जब भगवान परशुराम को इस बात की जानकारी हुई तो उन्हें बहुत क्रोध आया| उन्होंने कर्ण से कहा तुमको अगर शास्त्र विद्या सीखना था तो तुम सच बोलकर भी सीख सकते थे | तुम्हारे लगन को देख कर मै अपना नियम में ढील कर तुम्हें शास्त्र विद्या सिखाता | आखिर हर नियम का अपवाद होता है | परन्तु तुमने गुरु के साथ छल किया है ,अतः मै तुम्हे श्राप देता हूँ की यह शास्त्र विद्या सबसे जरूरी समय पर तुम्हारे कोई काम का नही होगा | यह सुनकर कर्ण अपना प्राण देने को आतुर हो गया | उसने अपनी सफाई में कहा उसे नहीं ज्ञात था कि वह छत्रिय है | गुरु से छमा मांगी | कर्ण, भगवान परशुराम का सबसे प्रिय छात्र था | परन्तु श्राप वापस नही हो सकता था ,तो उन्होंने ने अपना विजय नामक धनुष दिया और आशीर्वाद दिया |
भगवान परशुराम बहुत हे दयालु थे | मान्यता है के वे आठ चिरंजीवी पुरुषों में एक है जो आज भी पृथ्वी पर रहते है | जिससे उनके पूजा श्री राम ,कृष्ण के तरह नही होते है | भगवान परशुराम अमर है |
कर्ण के वास्तविक माँ कुंती थी ,परन्तु कर्ण का जन्म कुंती के विवाह के पहले हो गया था | लोकलाज के कारण कुंती ने उसे गंगा जी में प्रवाहित कर दिया था |
भीष्म के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने गंगा जी में प्रवाहित होते एक बच्चे को देखा तो उसे बचा केर गोद ले लिया | अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को अपने संतान नही थी | माँ गंगा का प्रसाद समझ कर उन्होंने उस बच्चे को गोद ले लिया| उस का नाम वासुसेन रखा और उसका लालन पालन करने लगे | माँ के नाम के कारण उसे राधेय भी कहा जाता है |
भगवान परशुराम ने अपने पिता के आज्ञानुसार अपने माता का फरसा से बध कर दिया था ,और पिता के वरदान पा कर उन्होंने माँ को जीवित कर दिया था | परन्तु भगवान परशुराम पर माँ की हत्या का पाप था ,जिससे मुक्ति पाने को भगवान परशुराम ने सारे संसार का तीर्थाटन किया | परन्तु उन्हें पाप से मुक्ति नहीं मिली |
तब उनके पिता ने बताया के कैलाश के पास ब्रह्मकुंड है ,जिसमे स्नान करने से वे इस पाप बोध से छूट जायेंगे | पिता के बात मानकर वे हिमालय पर चढ़ केर कैलाश के पास ब्रह्मकुंड में स्नान किया ,जिससे वे पाप मुक्त हो गए |
ब्रह्मकुंड के पवित्र जल के प्रभाव से वे अचंभित हो गए | जन कल्याण हेतु पवित्र जल को धरती पर उतरने के लिए पर्वत काटकर ब्रह्मकुंड से एक जलधारा निकाली। जिसका नाम ब्रह्पुत्र दिया गया |
जँहा पर्वत से ब्रह्पुत्र पृथ्वी पर अवतरित होते है वहाँ एक कुंड बन गया,जिसको परशुराम कुंड कहते है | यह कुंड हिन्दू धर्मालम्बियों का एक पवित्र तीर्थ है |
आगे जाकर यह ब्रह्पुत्र नदी लोहित कुंड में समा जाती है | परशुराम जी ने लोहित कुंड से ब्रह्पुत्र नदी को निकाला ,जिसके कारण इसे लोहित नाम से भी जाना जाता है | इसके बाद यह नदी की धार कलकल करते हए बहती है | इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धूल जाते है और मुक्ति मिल जाती है | यह परशुराम भगवान के द्वारा संसार के लिए किया गया पुण्य कार्य है |
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में महिस्मती राज में सहस्त्रबाहु नाम के एक छत्रिय राजा राज करता था | सहस्त्रबाहु बहुत ही क्रूर ,निर्दयी और अधर्मी राजा था ,उसके राज में प्रजा बहुत परेशान थी | धरती माता ने भगवान विष्णु से प्राथना किया की इस दुस्ट सहस्त्रबाहु से पृथ्वी को मुक्त करा दिया जाए |भगवान विष्णु ने धरती माता को विश्वास दिलाए के जब जब पृथ्वी पर धर्म का नाश होता है तो वे अवतार लेकर पुनःधर्म को स्थापित करते है | इस प्रकार परशुराम भगवान के रूप में विष्णु भगवान ने अपना छठा अवतार लिया | कालान्तर में परशुराम ने सहस्त्रबाहु का वध कर उसके अत्याचार को खत्म किया एवं धर्म को स्थापित किया |
जब परशुराम जी का परशु पाप मुक्त हो गया उसके बाद उस परशु से उन्होंने लगभग सौ वर्षो तक युद्ध किया और इकीस बार पृथ्वी से छत्रियों का समूल नाश किया| बाद में पितरों का तर्पण किया | प्रतिशोध पूरा होने एवं क्रोध शांत होने पर कोकण नमक स्थान पर अपना परसा समुन्द्र को समर्पित कर दिया |
परशुराम भगवान ने वर्तमान के कोंकण एवं केरल को बसाया था |
परशुराम जयंती कँहा मनाया जाता है
परशुराम जयंती पुरे भारतवर्ष में मनाया जाता है | खास कर उत्तर भारत में बहुत धूम धाम से परशुराम जयंती मनाते है |इसके आलावा नेपाल वर्मा भूटान इत्यादि देशों में भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है | विदेशों में रहने बाले भारतवासी अपने देशों में धूम धाम से पवित्र परशुराम जयंती मनाते है |
परशुराम जयंती कैसे मनाया जाता है
परशुराम जयंती के दिन उपासक स्नान ध्यान करके ,घर पर परशुराम जी के मूर्ति को नहला कर सिंदूर ,लाल वस्त्र चढ़ाते है | पीला गेंदा के फूल परशुराम जी को प्रिय है ,अतः पीला गेंदा का फूल चढ़ाते है | फल ,लड्डू एवं अन्य मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाते है| पूजा एवं आरती होता है | उसके बाद प्रसाद वितरण होता है |
पूजा की विधि
सामाजिक एवं व्यपारिक महत्व
परशुराम जयंती में बाहर रहने वाले लोग ,बाहर काम करने वाले अपने घर वापस आते हैं ,पुरे परिवार के साथ परशुराम जयंती मना कर वापस लौटते है | इससे संबंध मजबूत होते है |
परशुराम जयंती में नए वस्त्र पहनने का रिवाज़ है | इससे कपड़े का बाजार में काफी चहल पहल रहती है |
भारतवर्ष में त्योहार में स्वादिस्ट पकवान बनाने खाने खिलाने का परंपरा है | परशुराम जयंती में अपने परिवार और दोस्तों के साथ खाने का रिवाज़ है | परशुराम जयंती में भी खाने ,पीने और मिष्ठान की काफी बिक्री होती है | इससे व्यापार जगत में काफी मुनाफा होता है |
अस्वीकरण: इस आलेख में व्यक्त
किए गए विचार विभिन्न लेखों]संचार
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जय परशुराम,जय जय परशुराम |
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