माँ छिन्नमस्तिका देवी| Maa Chinmastika mandir| Hindu devi |Hindu religion

                                                              

                                               माँ  छिन्नमस्तिका देवी मंदिर 

 

  भूमिका: इस लेख का उद्देश्य नई पीढ़ी को अपने गौरबपूर्ण  इतिहास ,देवी देवताओं , मंदिर के बारे में जागरुक करना है | इस लेख में माँ  छिन्नमस्तिका देवी का विश्वविख्यात मंदिर रजरप्पा के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे | इसके साथ साथ माँ के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे | बिना ज्यादा भूमिका के मूल विषय पे आते है | 

माँ  छिन्नमस्तिका देवी का विश्वविख्यात मंदिर रजरप्पा में है |  झारखण्ड राज्य के रामगढ़ जिला में रजरप्पा है|  | रजरप्पा ,झारखण्ड राज्य के राजधानी राँची से लगभग ८० किलोमीटर दूर है | राँची से यहां पहुँचने के लिए सार्वजनिक परिवहन के आलावा अपने सवारी का उपयोग किया जाता है | सड़क मार्ग बेहतर है | लेकिन सवारी का उपयोग सावधानी से करना जरुरी है , नहीं तो दुर्घटना होने का खतरा होता है | 

                                   याद रहे  'सावधानी हटी दुर्घटना घटी |'

देश विदेश के किसी भाग से राँची पहुँचने के लिए सड़क ,हवाई एवं रेल मार्ग है | मंदिर सुबह चार बजे से रात्रि सात बजे तक खुला रहता है ,इसके बाद पूजा आरती की जाती है और मंदिर का पट बंद हो जाता है | पुनः सुबह चार बजे खुलता है |   

यह मंदिर हिन्दुओं  का बहुत पवित्र मंदिर है | माँ का मंदिर शक्तिपीठ के रूप में विश्वविख्यात है | यह दुनिया का  दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ है| दुनिया का  पहली  सबसे बड़ी शक्तिपीठ आसाम में माँ कामाख्या मंदिर  है|

एक मान्यता के अनुसार एक बार माँ भवानी अपने दो सहचरणीयों डाकनी एवं शाकनी के साथ भ्रवण कर रही थीं | भ्रवण करते  करते बहुत देर होने से डाकनी एवं शाकनी को जोर से भूख लग गई | मंदाकनी नदी को देख माँ को स्नान करने का मन हो गया | माँ ने उनको भी स्नान करने को कहा परन्तु वे स्नान करने नहीं  गईं | माँ को स्नान करने में देर हो  जाने से उन दोनों का भूख और बढ़ गया वे भूख से छटपटाने लगी | वहां दूर दूर तक खाने को कुछ नहीं था | वे बार बार माँ से खाना देने को कहने लगी | इससे माँ ने दाएं हाथ में खड्ग लेकर अपना सिर धर से अलग कर दिया और रक्त धार से दोनों को तृप्त किया| यह जानकर कि माँ ने अपना सिर धर से अलग कर दिया  ब्रह्माण्ड में हलचल हो गया ,देवी देवता परेशां हो गए | तब शिव भगवान ने  उनके क्रोध को शांत कराया | और उनका नाम छिन्नमस्तिका देवी हो गया | 

                         माँ छिन्नमस्तिका के अन्य नाम 

माँ छिन्नमस्तिका पार्वती माँ के एक रूप है | माँ छिन्नमस्तिका देवी सहस्त्रनामा है | इनके कुछ प्रचलित नाम इस प्रकार है: छिन्मस्ता देवी  ,चिंतपूर्णी देवी,शाकम्भरी देवी ,प्रचंड चन्द्रिका देवी,सर्वानंद प्रदायनी देवी,ब्रज वैरागनी,जोगनी माँ  एवं अनपूर्णा देवी है | ब्रज वैरागनी देवी जैन ,बौद्ध एवं शाक्तों में भी पूजे जाते है |सनातन धर्म में माँ को सर्वसिद्धिपूर्ण करने वाली अधिस्ठात्री कहा जाता है | 

                     माँ  छिन्नमस्तिका देवी मंदिर का इतिहास 

एक मान्यता के अनुसार यह मंदिर ६००० साल पुराना है | 

दूसरे मान्यता के अनुसार यह मंदिर महाभारत काल का है | माँ के मंदिर की  चर्चा शिवपुराण एवं मार्कण्डेपुराण  में है | 

एक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में छोटानागपुर में रज नामक राजा राज्य करते थे | उनके पत्नी का नाम रुपमा था | इनके नाम पर इस जगह का नाम राजरूपमा पारा ,जो कालन्तर में रजरप्पा हुआ | उनको कोई संतान नही थी | इससे वे काफी दुःखी रहते थे | एक समय रज  शिकार करते हुए भैरवी - भेड़ा  नदी  और दामोदर नदी के संगम के पास पहुंचे | रात्रि में माँ ने स्वप्न में रज को कहा कि  डरो मत ,मै छिन्नमस्तिका देवी  हूँ | मै प्राचीन काल  से यहां निवास करती हूँ | तुम्हारे दुःख को मेँ जानती हूँ |  दोनों नदियों के संगम के पास मेरा एक मंदिर है जिसमे शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा है | तुम सुबह वहाँ पूजन करना ,तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी | ऐसा कह कर  छिन्नमस्तिका देवी अंतर्ध्यान हो गई | 

सुबह  उठ कर रज  राजा ने माता के बताये स्थान पर मंदिर पाया और  वहाँ सच्चे मन से पूजा किया | माता के कृपा से राजा को संतान सुख प्राप्त हुआ | इसके बाद से यह मंदिर  माँ  छिन्नमस्तिका देवी के मंदिर के नाम से विख्यात हो गया | देश विदेश से लोग आने लगे | उनके मनोकामना पूरी होते गए  जिससे मंदिर की ख्याति बढ़ती गई और आज मंदिर  विश्वविख्यात है |  

माँ  छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर रजरप्पा में  भैरवी - भेड़ा  नदी  और दामोदर नदी के संगम के पास है| पश्चिम दिशा से बहती हुई दामोदर नदी में दक्छिण दिशा से बहने वाली नदी का संगम बहुत ही विहंगम दृश्य उत्तपन करता है | 

मंदिर के उत्तरी दीवार के पास रखे एक शिलाखंड पर माँ का दिव्य रुप है | माँ का मुख दक्षिण के तरफ है | माँ के दाएं हाथ में खड्ग है और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है | माँ के बाएं ओर डाकनी एवं  दाएं ओर शाकनी है | माँ के कटे ग्रीवा से रक्त के तीन धाराएं निकल रहीं है |एक रक्त धारा  डाकनी के मुख में ,दूसरी रक्त  धारा  शाकनी के मुख में एवं तीसरी रक्त धारा  माँ के कटे सिर के मुख में  जाती है | डाकनी एवं शाकनी को जया एवं विजया भी कहा जाता है | वे माता के सहचरी है | देवी के दो सहचरणी रज एवं तम गुण के द्योतक है | माँ उनको भी अपना रक्त पान करवा कर उनका पोषण कर रहीं है और खुद  भी अपना रक्त पान  कर रहीं है | 

माँ के रुप का बखान करना किसी के वश में नहीं है | 

माँ को तीन आँखे है | गले में संपमाला एवं मुण्डमाल है | गले में येगोपवीत है|  पुरे शरीर पर आभुषण है | आभुषणों से माँ का शरीर ढका हुआ है | माँ ने वस्त्र नहीं पहना हुआ है क्यू की दिशाऐ  माँ  का वस्त्र है | माँ की नाभि में योनिचक्र है | माँ के पाँव के नीचे विपरीत रतिमुद्रा में कामदेव एवं रति है | 

मंदिर परिसर में सात मंदिर है जिनके नाम इस प्रकार है : माँ महाकाली मंदिर,सुर्य मंदिर,बाबाधाम मंदिर, शिवमंदिर, बजरंगवली मंदिर,दस महाविद्या मंदिर एवं विराट मंदिर | 

                                                       मंदिर खुलने का समय

 यह मंदिर प्रत्येक दिन सुबह चार बजे से रात्रि सात बजे तक खुला रहता है ,इसके बाद पूजा आरती की जाती है और मंदिर का पट बंद हो जाता है | पुनः सुबह चार बजे खुलता है | दोपहर 12- 01 बजे तक पट बंद रहता है। लेकिन जाने से पहले आप चेक कर ले | 

इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है | शरद नवरात्रि,चैत्र नवरात्रि एवं गुप्त नवरात्रि के समय भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ होती है | देश विदेश से दूर दूर से लोग माँ के दरवार में पहुँचते है | हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में माँ के जयंती मनाई जाती है | तंत्र मन्त्र सिद्ध करने वाले की भीड़ रहती है | 

शांत एवं सच्चे मन से माँ की उपासना करने से माँ प्रसन्न होने पर सभी मनोकामनाएं पूरा करतीं है|  माँ सभी चिंताओं को दूर करतीं है,इस कारण माँ को चिंतपूर्णी देवी भी कहा जाता है | माँ भक्तों पर कृपा करतीं है | माँ दुस्टों के लिए संहारक है |  

                                                             पूजा की विधि 

यहाँ वैदिक और तांत्रिक विधियों से  पू‌जा होती है। वैदिक पूजा सार्वजनिक होती हैं।तांत्रिक पूजा भगवती की पूजा-मंदिर के पट बंद रहने पर 10 मिनट के लगभग की होती है।

यह मंदिर कालिक मंत्र की सिद्धि के लिए बहुत प्रसिद्ध है।

माँ की पूजा सिन्दूर, चुनरी ,साडी श्रृंगार के सामग्री प्रसाद, फूलों से की जाती है। यहाँ नारियल चढाने का प्रचलन है। माँ को लाल उड़हुल का फूल बहुत पसंद है तो लाल उड़हुल के फूल और माला चढ़ाया जाता है।भजन किर्तन किया जाता है और आरती  उतारी जाती है| शाम की आरती की छटा निराली होती है इसका बहुत महत्ब होता है | 

माँ के शक्ति एवं दयालुपन को बातने के लिए कोई शब्द नहीं है| 

सच्चे मन से किया गया पूजा से मां प्रसन्न होती  है और मनोवांछित फल देती है, मनोकामनएं पूर्ण करती है | 

मंदिर के पास ही सारे पूजा के समान मिलजाता है | 

                            मंदिर पहुंचने का रास्ता 

     देश विदेश के किसी भाग से राँची शहर पहुँचने के लिए सड़क ,हवाई एवं रेल मार्ग है | राँची  शहर वायु मार्ग ,रेल और सड़क मार्ग से हर जगह से जुड़ा है |शहर में  कार,टैक्सी हर वक्त उपलब्ध होता है। 

अस्वीकरण:  इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार विभिन्न लेखों]संचार माध्यमों से लिए गए है और सभी सूचनाएँ मूल रुप से प्रस्तुत की गईं हैSaA व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार नहीं हैं तथा इसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है|किसी भी जानकारी या मान्यता को इस्तेमाल करने से पूर्व सम्बंधित विशेषज्ञ की राय प्राप्त कर लें | 

Tags : मंदिर| हिन्दू | धर्म | आस्था | शक्तिपीठ | देवी देवता | भारत |   

इन्हें भी देखें 

 https://knowledge-festival.blogspot.com/2022/05/janki-navami.html

https://knowledge-festival.blogspot.com/2022/04/2022-hanuman-janmotsav-2022.html 



                                                          माँ  छिन्नमस्तिका देवी मंदिर 

बाह्रय स्त्रोत: https://en.wikipedia.org/विकी  

https:// hi.wikipedia.org >wiki 

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE 

https://www.jagran.com/lite/spiritual/puja-path-know-how-maa-chhinmasta-originated-and-what-is-the-story-related-to-it-22436855.html



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